हम सभी इस बात से एग्री करते हैं कि स्टॉक्स में इन्वेस्ट करके हम बहुत कमा सकते हैं पर वही साथ ही साथ इसमें रिस्क भी बहुत होता है वही कुछ लोग एफडी में इन्वेस्ट कर देते हैं पर उसमें इन्ट्रेस्ट बहुत कम मिलता है इस स्थिती में रक्षक बनके आते हैं बांड्स इसमें हमें एफडी से ज्यादा और स्टॉक्स के मुकाबले सेफ रिटर्न्स मिलते हैं, चलिए जानते हैं बॉन्ड्स के बारे में सारी जानकारी आज इस आर्टिकल में,
हैलो, मेरा नाम है सुशांत और आप पढ़ना शुरू कर चुके है moneymandal.com, अगर आप अपनी इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियों को डायवर्सिफाई करना चाहते हैं तो बॉन्ड्स एक अच्छा विकल्प हो सकता है तो चलिए शुरू करते हैं आज की आर्टिकल को ये जानकर कि बांड आखिर होते क्या है?
बांड आखिर होते क्या है?
बांड आखिर होते क्या है? तो बॉन्ड से एक तरह से इनडैरेक्ट वे होता है कंपनियों और गवर्नमेंट द्वारा अपने किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए लोगों से पैसे मांगने का कंपनी या गवर्नमेंट आपके लिए बॉन्ड्स इश्यू करती है और उसके बदले आपसे पैसे लेती है,
सरकार या किसी भी कंपनी के पास पैसे उधार पर लेने के तीन तरीके होते हैं, पहला वो स्टॉक मार्केट से ले सकते हैं पर वहाँ वो जीतने शेयर्स बांटेंगे उतने ही उनके खुद भी शेयर्स कम हो जाएंगे दूसरा ऑप्शन है बैंक्स सरकार या कंपनियां बैंक से भी लोन ले सकती हैं पर यहाँ दिक्कत ये आती है कि उस लोन पर इंट्रेस्टेड बहुत ज्यादा होता है,
तीसरा ऑप्शन आता है बॉन्ड्स का बॉन्ड्स के जरिए वो आप लोगों से बहुत कम भी नहीं पर मॉडरेट जैसे आठ से नौ परसेंट इंट्रेस्ट रेट पर लोन ले सकती है,
बॉन्ड्स में इन्वेस्टमेंट क्यों करना चाहिए?
अब सवाल आता है कि बॉन्ड्स में इन्वेस्टमेंट क्यों करना चाहिए आम तौर पर जब हमारे पास पैसे होते हैं तो हम किसी बैंक की ऐफ़डी में पैसा जमा कर देते हैं पर वहाँ हमें करीब पांच से छह परसेंट का ही इंट्रेस्ट रेट मिलता है जो काफी कम है, वहीं अगर हम स्टॉक मार्केट में पैसा लगाए तो वहाँ हमें रिटर्न तो बहुत अच्छे मिलते हैं पर उधर पैसे डूबने का खतरा भी उतना ही होता है इसलिए सेफ ऑप्शन जो हमारे पास बचता है वो है बांड जिसमें हमें इन्ट्रेस्ट भी अच्छा मिलता है और रिस्क भी कम होता है,
बांड्स में निवेश के फायदे
अब जानते हैं बांड से जुड़ी कुछ खास बातें, इम्पोर्टेंस ऑफ़ बॉन्ड:-
#1. रेगुलर इन्कम सोर्स:- सबसे पहले तो ये है कि बॉन्ड्स की मदद से आप एक रेगुलर इन्कम सोर्स बना सकते हैं आप एक बार अपना पैसा किसी अच्छी जगह लगा दीजिए और फिर हर महीने उन पैसों पर लगने वाला अच्छा खासा इंट्रेस्ट पाते जाइए समय पूरा होने पर आपको अपना सारा पैसा भी मिल जाएगा और उस समय तक आपको इन्ट्रेस्ट भी मिलता रहेगा,
#2. डायवर्सिफिकेशन:- दूसरा पॉइंट है डायवर्सिफिकेशन, बॉन्ड्स आपके पोर्टफोलियों को डायवर्सिफाई करते हैं,
#3. सेफ निवेश विकल्प:- तीसरा पॉइंट है बॉन्ड्स को एक सेफ इन्वेस्टमेंट ऑप्शन भी माना जाता है इन में इंट्रेस्ट रेट भी अच्छा होता है और ये सिक्योर भी होते हैं,
#4. प्रेडिक्टेबल रिटर्न्स:- चौथा पॉइंट है प्रेडिक्टेबल रिटर्न्स, यानी कि इसमें रिटर्न्स में ज्यादा उतार चढ़ाव नहीं होता, रिटर्न इसमें लगभग सेम ही रहते हैं इसलिए भी ये ज्यादा सिक्योर ऑप्शन माना जाता है बॉन्ड्स को आप सिक्योर प्लेज की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं कभी कभी एस्पेशल्ली जो लोग ट्रेनिंग करते हैं, उन्हें लोन लेने के लिए कोलेटरल दिखाने की जरूरत पड़ती है उस समय आप बॉन्ड्स को कोलैटरल की तरह यूज़ कर सकते हैं,
बांड्स में हमें इंट्रेस्ट रेट किस तरह मिलता है?
चलिए अब जानते हैं बांड्स में हमें इंट्रेस्ट रेट किस तरह मिलता है तो बॉन्ड्स में इंट्रेस्ट रेट दो तरह से मिलता है या तो आपको एनुअली यानि सालाना इंट्रेस्ट मिलेगा या आपका टेन्योर पूरा होने के बाद सारा पैसा इन्ट्रेस्ट समेत मिल जाएगा, मानिए कि हमने पांच साल के लिए किसी बॉन्ड में पैसा लगाया है तो या तो आप उस पर इंटरेस्ट हर साल ले सकते हैं या पांच साल बाद अपना प्रिन्सिपल अमाउंट इन्ट्रेस्ट के साथ ले सकते हैं,
बॉन्ड मार्केट में प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट क्या होता है?
दोस्तों चलिए अब एक और नई चीज़ जानते हैं कि बॉन्ड मार्केट में प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट क्या होता है? तो जब कोई नया बॉन्ड मार्केट में आता है जैसे बॉन्ड का कोई (IPO) यानी Initial Public Offering आयी, और आप उसी समय उसे खरीद लेते हैं और उसे मेच्युरिटी तक होल्ड करके रखते हैं तो उसे कहते हैं कि बॉन्ड प्राइमरी मार्केट से लिया है जैसे मानिए कि आरबीआई ने कोई नया बॉन्ड इश्यू किया है और हमने उसे पांच साल के लिए खरीदा है
अब हम उसकी मेच्युर होने का पांच साल तक इंतजार करेंगे तो इसका मतलब होगा कि ये बॉन्ड प्राइमरी मार्केट से लिया गया है और अगर ये जो बॉन्ड हमने लिया है उसे हम पांच साल से पहले ही बेचना चाहते हैं तो हमें सेकेंडरी मार्केट में जाना होगा और उसे मेच्युरिटी से पहले बेचने के लिए एक बायर भी ढूंढना होगा,
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बॉन्ड मार्केट से जुड़ी कुछ कॉमन टर्म्स
दोस्तों अब जानते हैं बॉन्ड मार्केट से जुड़ी कुछ कॉमनटर्म्स के बारे में:-
1. फेस वैल्यू:- बॉन्ड मार्केट में आपको दो कॉमन टर्म सुनने को मिल जाएंगी पहली है फेस वैल्यू , फेस वैल्यू के प्राइस को कहा जाता है, जीस पर वो बेचा जा रहा है,
2. कूपन रेट:- और दूसरी कॉमन टर्म है कूपन रेट ये एक तरह से इंट्रेस्ट रेट होता है जो कंपनी देती है अपने बॉन्ड्स पर
बांड के टेन्योर
अब जानते हैं बांड के टेन्योर के बारे में, बॉन्ड्स का टेन्योर बेसिक्ली उनका मेच्युरिटी पीरियड होता है जीतने सालों के लिए वो बॉन्ड आपको दिया जाता है उसे बॉन्ड का टेन्योर कहते हैं, इसी में एक टर्म आ जाती है रिडैम्पशन पीरियड ये भी बॉन्ड का टेन्योर ही होता है अब जैसे हमने कोई बॉन्ड दो 2024 में लिया है और इसका टेन्योर या कहे रिडेम्पशन रेट पांच साल है
मतलब इस बॉन्ड का सारा पैसा हमें 2029 में मिल जाएगा इसका इंट्रेस्ट रेट तो आपको मिलता ही रहेगा, लेकिन जीस फेस वैल्यू पर हमने वो बॉन्ड लिया था, वो हमें 2029 में पूरी मिल जाएगी,
कितने सालों तक बॉन्ड को रखना चाहिए?
अब कई लोगों का इधर सवाल आता है कि कितने सालों तक बॉन्ड को रखना चाहिए, ये पूरी तरह से आप पर डिपेंड करता है आप अगर तीन साल के लिए बॉन्ड को रखना चाहते हैं तो आप तीन साल की टेन्योर वाला बॉन्ड लीजिए अगर आप पांच साल के लिए किसी बॉन्ड में पैसा लगाना चाहते हैं तो आप पांच साल की टेन्योर वाला बांड लीजिये
पर अगर आपको कोई पांच साल के टेन्योर वाला बॉन्ड मिल रहा है पर आपको सिर्फ एक दो साल के लिए ही उसे रखना है और आप सोच रहे है कि बाद में उसे बेच देंगे तो हम आपको सजेस्ट करेंगे कि ऐसा न हीं करें, क्योंकि जैसे कि आपको पता है कि बॉन्ड मार्केट अभी इंडिया में इतना डेवलप नहीं हुआ है, तो आपको सेकेंडरी मार्केट में उसे बेचने में दिक्कत आ सकती है,
Yield to maturity यानी YTM क्या होता है?
अब चलिए जानते हैं कि ये Yield to maturity यानी YTM क्या होता है इसको हम एक एग्ज़ैम्पल से समझते हैं जैसे एक बॉन्ड है जिसकी फेस वैल्यू है हज़ार रुपए और उसका कूपन रेट है दस परसेंट अब मानिए कि हमको ये बॉन्ड पांच सौ रुपए का मिल रहा है, यहाँ आपकी Yield हो जाएगी बीस परसेंट क्योंकि अब आपको पांच सौ रुपए पर हज़ार रुपए इंट्रेस्ट के तौर पर मिलेंगे तो बॉन्ड खरीदते समय आपको इन चीजों का ध्यान रखना है,
बांड्स के प्रकार (Types of Bonds)
चलिए अब जानते है टाइप्स ऑफ़ बॉन्ड्स के बारे में:-
1. गवर्नमेंट बॉन्ड्स:- एक होता है गवर्नमेंट बॉन्ड्स जो सरकार, स्टेट गवर्नमेंट या सेंट्रल गवर्नमेंट इश्यू करती है, इन्हे हम
G sec भी कहते है या गवर्नमेंट सिक्योरिटी भी कहते है,
2. बॉन्ड इश्यू बाय, पब्लिक सेक्टर, अंडरटेकिंग:- दूसरे होते हैं बॉन्ड इश्यू बाय, पब्लिक सेक्टर, अंडरटेकिंग, पब्लिक सेक्टर, अंडर टेकिंग में भी ज्यादा शेयर स्टेट या सेंट्रल गवर्नमेंट के पास ही होते हैं हाँ, पर ये गवर्नमेंट बांड जीतने सेफ नहीं होते, पर रिस्क इसमें कम होता हैं,
3. कॉर्पोरेट बांड्स:- तीसरे होते हैं कॉर्पोरेट बांड्स इन में भी रिस्क कम ही होता हैं पर ये भी कही ना कही कंपनी टू कंपनी डिपेंड करता हैं, अब जैसे अगर टाटा कंपनी के बॉन्ड होंगे तो वो कहीं ना कहीं सेफ ही माने जाते हैं,
बांड में रिस्क के क्या क्या टाइप्स होते हैं?
अब जानते हैं कि बांड में रिस्क के क्या क्या टाइप्स होते हैं:-
1. क्रेडिट रिस्क या डिफ़ॉल्ट रिस्क:- इसमें पहला आता है क्रेडिट रिस्क या डिफ़ॉल्ट रिस्क ये रिस्क तब खड़ा होता है जब Borrower यानि कर्ज़दार आपके पैसे वापस ना दे या कांट्रॅक्ट के हिसाब से ना चले, ये रिस्क ऑलमोस्ट ना के बराबर होते है गवर्नमेंट बॉन्ड में, कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में इस रिस्क की रेटिंग कंपनी टू कंपनी डिपेंड करता है आप क्रेडिट रेटिंग चेक करने के बाद ही इसमें पैसा लगाएं,
2. लिक्विडिटी रिस्क:- दूसरा आता है लिक्विडिटी रिस्क, ये रिस्क तब आता है जब मार्केट में किसी पर्टिकुलर बॉन्ड के खरीदार बहुत कम होते है, तो अगर खरीददार कम होंगे तो मतलब उसकी डिमांड कम होगी मतलब उसका प्राइस भी कम ही होगा और ये कहलाता है लिक्विडिटी रिस्क,
3. इंट्रेस्ट रेट रिस्क:- तीसरा रिस्क है इंट्रेस्ट रेट रिस्क, मार्केट में जैसे जैसे नए बॉन्ड आते जाएंगे, वैसे वैसे हमारे बॉन्ड्स की डिमांड भी घटती जाएगी और वैसे वैसे उनका इंट्रेस्ट रेट भी फ्लक्चूएट होता जाएगा इसी चीज़ को कहते हैं इंट्रेस्ट रेट रिस्क
हम बॉन्ड्स को कैसे खरीद सकते हैं?
चलिए अब जानते हैं कि हम बॉन्ड्स को कैसे खरीद सकते हैं? आप गवर्नमेंट बॉन्ड आर बी आई की वेबसाइट से खरीद सकते हैं या अगर आपको किसी बैंक का बॉन्ड खरीदना है तो आप उनकी वेबसाइट पर जाकर खरीद सकते हैं,
कॉर्पोरेट बांड्स खरीदने के लिए भी आपके पास बहुत विकल्प है जैसे Goldenpi एक विश्वसनीय साइट है जहाँ से आप बॉन्ड्स और डिबेंचर की खरीददारी कर सकते हैं JM Financial ने भी एक नया प्लेटफार्म लॉन्च किया है जो है Bondskart आप यहाँ से भी बॉन्ड्स खरीद सकते हैं BondsIndia से भी आप बॉन्ड्स खरीद सकते हैं इधर, आपको और किसी कंपनी के बॉन्ड्स दिखे या नहीं दिखे पर आपको सभी भारतीय कंपनियों के बांड जरूर दिख जाएंगे, आपका खरीदा हुआ बॉन्ड सीधा आपके डीमैट अकाउंट में स्टोर हो जाएगा,
कॉर्पोरेट बॉन्ड आरबीआई बॉन्ड से अलग कैसे हैं?
अब एक और सवाल ये आ जाता है कि कॉर्पोरेट बॉन्ड आरबीआई बांड्स से अलग कैसे हैं? आपको बता दे सभी बॉन्ड्स एक से ही होते हैं बस फर्क होता है तो कंपनी का, फर्क होता है तो इन बॉन्ड से जुड़े रिस्क में, गवर्नमेंट बांड्स सेफ ऑप्शन माने जाते हैं क्योंकि इसमें उस कंपनी के गिरने का डर नहीं होता, पर कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में हमेशा कुछ ना कुछ रिस्क तो जरूर होता है,
बॉन्ड से कमाई पर लगने वाले टैक्स
अब बात करते हैं बॉन्ड से कमाई पर लगने वाले टैक्स के बारे में, दो तरह के बॉन्ड्स होते हैं एक होते हैं लिस्टेड बॉन्ड्स और दूसरे होते हैं अनलिस्टेड बॉन्ड्स लिस्टेड बॉन्ड्स को अगर बारह महीने से पहले बेचा जाता है तो उनपे लगता है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स और बारह महीने के बाद उसपे लगेगा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन स्टैक, और अनलिस्ट बंड्स में अगर हमने अपनी इन्वेस्टमेंट को छतीस महीनों से पहले बेचा तो वो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स में आएगा,
छतीस महीने बाद उस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है, इस बॉन्ड पर मिलने वाले कैपिटल गेन पर टैक्स लगाया जाता है, शार्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स दोनों तरह के बॉन्ड्स में आपके टैक्स स्लैब पर डिपेंड करेगा, और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लिस्टेड बॉन्ड में दस परसेंट का लगेगा और अनलिस्ट बॉन्ड्स में बीस परसेंट का लगेगा,
Bond Type | Holding Period | Capital Gains Tax Rate |
---|---|---|
Listed Bonds | Less than 12 months | Short Term Capital Gains Tax (Depends on tax slab) |
Listed Bonds | 12 months or more | Long Term Capital Gains Tax (10%) |
Unlisted Bonds | Less than 36 months | Short Term Capital Gains Tax (Depends on tax slab) |
Unlisted Bonds | 36 months or more | Long Term Capital Gains Tax (20%) |
बेस्ट बांड्स फॉर 2024
हम शुरुआत से इतना बॉन्ड बॉन्ड कर रहे हैं तो कुछ आजकल अच्छे चल रहे बॉन्ड्स के बारे में भी जान लेते हैं लिस्टेड बॉन्ड्स में आजकल चर्चा में चल रहा है ब्लू डार्ट एक्सप्रेस, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज, डॉक्टर रेड्डी लैबोरेटरी, एन टी पी सी, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेट आदि, कुछ अनलिस्टेड बांड्स है टाटा कैपिटल फाइनेंस सर्विस लिमिटेड, टाटा कैपिटल हाउज़िंग फाइनेंस लिमिटेड, एल आई सी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड आदि ,
Bond Name | Status | Type |
---|---|---|
Blue Dart Express | Listed | Corporate |
Britannia Industries | Listed | Corporate |
Dr. Reddy’s Laboratories | Listed | Corporate |
NTPC | Listed | Corporate |
Power Finance | Listed | Corporate |
Tata Capital Finance Services Ltd | Unlisted | Corporate |
Tata Capital Housing Finance Ltd | Unlisted | Corporate |
LIC Housing Finance Ltd | Unlisted | Corporate |
Final Word
तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने जाना बांड से रिलेटेड सब कुछ बॉन्ड क्या होते हैं?, कैसे खरीदे? बांड्स में क्या रिस्क होते हैं?, इनकी क्या इम्पोर्टेंस होती है? आदि अगर अभी भी आपका कोई सवाल हो या डाउट हो तो आप हमसे कमेंट सेक्शन में जरूर पूछियेगा आज के लिए हमारी तरफ से इतना ही आपसे मिलते हैं अगले किसी इंट्रेस्टिंग आर्टिकल में किसी इंट्रेस्टिंग टॉपिक के साथ, और हाँ अंत तक इस आर्टिकल में बने रहने के लिए शुक्रिया!
(Disclaimer: यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए लिखा गया है और किसी भी तरह से वित्तीय सलाह नहीं देता है। कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले, अपना खुद का शोध करें।)